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जानिए आखिर क्यों दी जाती है बकरीद पर कुर्बानी


मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान खत् होने के लगभग 70 दिनों बाद बकरीद का पर्व मनाते हैं। इसे ईद-उल-जुहा भी कहते हैं। ईद-उल-फितर (मीठी ईद) के बाद मुस्लिम समुदाय के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है बकरीद। इस दिन मुसलमानों के घर में कुछ चौपाया जानवरों खासकर बकरे की कुर्बानी देने की प्रथा है। कुर्बानी देने के बाद इसे तीन भागों में बांटकर इसका वितरण कर दिया जाता है। आइए जानते हैं ईद-उल-जुहा पर क्यों दी जाती है कुर्बानी

हजरत इब्राहिम ने शुरू की परंपरा                           

इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से हजरत इब्राहिम एक थे। इन्हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई।

अल्लाह का हुक्

माना जाता है कि अल्लाह ने एक बार इनके ख्वाब में आकर इनसे इनकी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा। इब्राहिम को अपनी इकलौती औलाद उनका बेटा सबसे अजीज था। उन्हें बुढ़ापे में जाकर अब्बा बनने की खुशी मिली थी। मगर अल्लाह के हुक् के आगे वह अपनी खुशी को कुर्बान करने को तैयार थे।

अल्लाह ने किया यह चमत्कार

अल्लाह की मर्जी के आगे भला किसी की क्या मजाल। हुआ यूं कि इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने को ले जा रहे थे तभी रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और उनसे कहने लगा कि भला इस उम्र में वह अपने बेटे को क्यों कुर्बान करने जा रहे हैं? शैतान की बात सुनकर उनका मन भी डगमगाने लगा और वह सोच में पड़ गए। मगर कुछ देर बात उन्हें याद आया कि उन्होंने अल्लाह से वादा किया है।

आंख पर बांध ली पट्टी

इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते वक् बेटे के प्रति उनका लगाव आड़े सकता है तो इससे बचने के लिए उन्होंने आंख पर पट्टी बांध ली। कुर्बानी देने के बाद जैसे ही उन्होंने आंख से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा जिंदा उनके सामने खड़ा है। अल्लाह ने चमत्कार किया और उनके बेटे की जगह दुंबा को लिटा दिया गया था। इस तरह इब्राहिम के बेटे की जान बच गई और दुंबे की कुर्बानी हो गई। तभी से कुर्बानी देने का रिवाज चल पड़ा।

शैतान को मारे जाते हैं पत्थर

हज पर जाने वाले मुस्लिम इब्राहिम को रास्ते से भटकाने वाले शैतान को अपनी हज यात्रा के आखिरी दिन पत्थर मारते हैं।

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