ऐसा गांव जहां बुजुर्ग हो या जवान, यहां कोई नहीं करता धूम्रपान
दरअसल, हरियाणा के अंतिम छोर पर बसा
राजस्थान से सटा छोटा सा गांव टीकला। आबादी मात्र 1500 लोग। गांव भले ही छोटा सा
हो लेकिन यहां दशकों से चली आ रही एक परंपरा इसे ऐतिहासिक बनाते हुए बड़ा संदेश दे
रही है। गांव में कोई भी धूम्रपान नहीं करता, बुजुर्ग हो या जवान हर कोई
बीड़ी-सिगरेट, पान-मसाला से दूर रहता है। यही नहीं अगर गांव में कोई रिश्तेदार आता
है तो उसे भी पहले बीड़ी-सिगरेट का सेवन न करने को कह दिया जाता है।
अगर कोई अंजान व्यक्ति गांव में
प्रवेश करता है तो गांववालों का पहला सवाल यही होता है- जेब में बीड़ी-सिगरेट,
पान-गुटखा तो नहीं है, इसके बाद ही उससे आगे बात की जाती है। इस छोटे से गांव की
पहचान हरियाणा ही नहीं बल्कि राजस्थान के कई गांव भी इसे आदर्श मानते हैं। गांव
टीकला में तंबाकू का किसी रूप में सेवन न करने की यह परंपरा आज की नहीं बल्कि कई
दशकों से है। दिल्ली से जयपुर तक इस गांव को इसलिए ही पहचाना जाता है कि यहां कोई
तंबाकू का उपयोग नहीं करता।
रेवाड़ी मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर
दूर इस गांव में जब अमर उजाला संवाददाता पहुंचे तो अंजान चेहरा देख ग्रामीणों ने
पूछा कि जेब में कोई तंबाकू उत्पाद आदि तो नहीं है। संवाददाता ने जब ‘ना’ कहते
कारण पूछा तो पता चला कि गांव में तंबाकू का सेवन प्रतिबंधित है। बाबा भगवानदास के
समाधिस्थल पहुंचे तो वहां भी यही सवाल हुआ। ग्रामीणों ने बताया कि उनके घरों में
आने वाले रिश्तेदारों को भी धूम्रपान करने से मना किया जाता है। रिश्तेदार भी
अच्छी पहल होने के चलते इसे बुरा नहीं मानते बल्कि बात पर अमल करते हैं। साथ ही
अपने गांव-शहर जाकर इस अच्छी परंपरा का जिक्र भी करते हैं।
आस्था ने
लिया जागरूकता का रूप
गांव टीकला में बाबा भगवानदास का मंदिर और समाधि बनी हुई है। उनकी 23वीं पीढ़ी में गृहस्थ गद्दी संभाल रहे बाबा अमर सिंह बताते हैं कि बाबा भगवानदास ने तंबाकू का बहिष्कार करने की शुरुआत की थी। बाबा के कई चमत्कार के बाद लोगों की आस्था उनमें बढ़ती गई और लोगों ने किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करना छोड़ दिया। तब से शुरू हुई आस्था आज गांव में जागरूकता के रूप में बदल चुकी है।
गांव टीकला में बाबा भगवानदास का मंदिर और समाधि बनी हुई है। उनकी 23वीं पीढ़ी में गृहस्थ गद्दी संभाल रहे बाबा अमर सिंह बताते हैं कि बाबा भगवानदास ने तंबाकू का बहिष्कार करने की शुरुआत की थी। बाबा के कई चमत्कार के बाद लोगों की आस्था उनमें बढ़ती गई और लोगों ने किसी भी रूप में तंबाकू का सेवन करना छोड़ दिया। तब से शुरू हुई आस्था आज गांव में जागरूकता के रूप में बदल चुकी है।
बड़ी बात
इसलिए भी: जाट बाहुल्य गांव, फिर भी हुक्का नहीं
प्रदेश की बात करें तो यहां हुक्का सामाजिक और पंचायती तौर पर मिलना आम बात है। टीकला गांव भी जाट बाहुल्य है। बावजूद इसके यहां पर तंबाकू का पूरी तरह निषेध होना अपने आप में बड़ी बात मानी जाती है। गांव के मौजिज लोग कहते हैं कि गांव के युवाओं ने पीढ़ियों से धूम्रपान नहीं करने के बारे में सुना है, ऐसे में वे भी इससे दूरी ही बनाए रखते हैं।
प्रदेश की बात करें तो यहां हुक्का सामाजिक और पंचायती तौर पर मिलना आम बात है। टीकला गांव भी जाट बाहुल्य है। बावजूद इसके यहां पर तंबाकू का पूरी तरह निषेध होना अपने आप में बड़ी बात मानी जाती है। गांव के मौजिज लोग कहते हैं कि गांव के युवाओं ने पीढ़ियों से धूम्रपान नहीं करने के बारे में सुना है, ऐसे में वे भी इससे दूरी ही बनाए रखते हैं।
गांवों में कई दशकों से तंबाकू
उत्पादों का उपयोग किसी भी रूप में नहीं होता है। इसके अलावा आने वाले रिश्तेदारों
को भी नशे के किसी चीज का उपयोग नहीं करने दिया जाता है। गांव के लोग ही नहीं अन्य
कई गांवों के लोगों की भी यहां के बाबा पर आस्था है। अब अन्य गांवों को भी तंबाकू
का उपयोग न करने के लिए जागरूक किया जा रहा है।
-विमलेश देवी, सरपंच, गांव टीकला
-विमलेश देवी, सरपंच, गांव टीकला