Happy Phirr Bhag Jayegi Movie Review
निर्देशक मुदस्सर अजीज एक बार फिर 'हैप्पी' के भागने की कहानी को 'हैप्पी फिर भाग जाएगी' से पर्दे पर लेकर आए हैं. इस कहानी के पहले भाग को 'हैप्पी भाग जाएगी' में हम पहले ही देख चुके हैं, जिसमें हैप्पी जबरदस्ती की शादी से बचने के चक्कर में भागती है और भागकर सीधा पाकिस्तान पहुंच जाती है. इस बार हैप्पी भागकर भारत के दूसरी पड़ोसी देश यानी चीन पहुंचती है. अनजाने में पाकिस्तान पहुंची हैप्पी की कहानी जिस अंदाज में हंसाती है, वहीं चीन में हैप्पी का यह कंफ्यूजन आपको हंसाने और गुदगुदाने में सफल हो पाता है या नहीं उस हद तक हंसाने में सफल साबित नहीं हुई है.
कहानी:
यह फिल्म हैप्पी नाम के चलते हुए कंन्फ्यूजन के बारे में है. पहली हैप्पी (डायना पेंटी) और गुड्डू (अली फजल) की शादी हो चुकी है. गुड्डू को चीन में एक म्यूजिकल शो ऑफर होता है और इसके लिए वह अपनी पत्नी के साथ चीन पहुंच जाते हैं. लेकिन यहां हैप्पी नाम के कंफ्यूजन के चलते जो लोग पहली हैप्पी को लेने आते हैं, वह दूसरी हैप्पी सोनाक्षी सिन्हा को उठाकर ले जाते हैं. यह हैप्पी भी गुंडो के चंगुल से भाग जाती है और फिर उसे मिलता है खुशवंत सिंह (जसी गिल), जो उसकी इस पूरे सफर में मदद करता है. हैप्पी को किडनैप करने वाले लोग सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि बग्गा और पाकिस्तान से उसमान अफरीदी को भी किडनैप करते हैं. यहीं से शुरू होता है यह पूरा सियाप्पा.
यह फिल्म हैप्पी नाम के चलते हुए कंन्फ्यूजन के बारे में है. पहली हैप्पी (डायना पेंटी) और गुड्डू (अली फजल) की शादी हो चुकी है. गुड्डू को चीन में एक म्यूजिकल शो ऑफर होता है और इसके लिए वह अपनी पत्नी के साथ चीन पहुंच जाते हैं. लेकिन यहां हैप्पी नाम के कंफ्यूजन के चलते जो लोग पहली हैप्पी को लेने आते हैं, वह दूसरी हैप्पी सोनाक्षी सिन्हा को उठाकर ले जाते हैं. यह हैप्पी भी गुंडो के चंगुल से भाग जाती है और फिर उसे मिलता है खुशवंत सिंह (जसी गिल), जो उसकी इस पूरे सफर में मदद करता है. हैप्पी को किडनैप करने वाले लोग सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि बग्गा और पाकिस्तान से उसमान अफरीदी को भी किडनैप करते हैं. यहीं से शुरू होता है यह पूरा सियाप्पा.
कहानी की शुरुआत ही हिंदी बोलते चीनी गुंडों और हैप्पी यानी सोनाक्षी सिन्हा की किडनैपिंग से होती है. कहानी का प्लॉट ही काफी कमजोर है, क्योंकि एक पाकिस्तानी अधिकारी से कोई सरकारी काम कराने के लिए उसके बेटे की हिंदुस्तानी दोस्त को किडनैप किया जाता है. शायद यह लाइन सुनकर ही आप कंफ्यूज हो गए होंगे, तो सोचिए कि पूरी कहानी इस कमजोर प्लॉट पर बुनी गई है. दूसरी तरफ फिल्म में इंटरवेल तक कहानी काफी बिखरी हुई है और आप दुआएं मांगने लगते हैं कि अब यह लाइन पर आ जाए.
कॉमेडी है, तो लॉजिक की जरूरत नहीं
हिंदी सिनेमा में किसी फिल्म के हिट होने के बाद उसी नाम का इस्तेमाल करते हुए 'सीक्वेल' बनाने का चलन चल पड़ा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि बिना किसी कहानी के महज स्टार-कास्ट बदलते हुए फिल्में बना दी जाएं. दूसरी तरफ कॉमेडी फिल्मों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हंसाने के नाम पर निर्देशक अक्सर 'लॉजिक' जैसी अहम चीज को फिल्मों में पूरी तरह नजरअंदाज कर देते हैं. जैसे फिल्म के एक सीन में सारे कलाकार चीन की जेल में पहुंच जाते हैं और जेल में छुपकर घुसने की कोशिश करने के बाद भी वह जेल में जाकर अमन वाधवा (अपारशक्ति खुराना) से मिलकर बाहर आ जाते हैं. इतना ही नहीं, अमन भी उनके साथ बाहर आ जाता है. न जेल वाले कुछ कहते हैं और न जेलर. वहीं बिना पासपोर्ट के दो हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी पुलिस ऑफिसर घूम रहा है और उन्हें कोई नहीं पकड़ता है. इस फिल्म में ऐसे कई सारे मूमेंट हैं जब 'लॉजिक' के बिना कॉमेडी करने की कोशिश दिखाई देती है.
हिंदी सिनेमा में किसी फिल्म के हिट होने के बाद उसी नाम का इस्तेमाल करते हुए 'सीक्वेल' बनाने का चलन चल पड़ा है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि बिना किसी कहानी के महज स्टार-कास्ट बदलते हुए फिल्में बना दी जाएं. दूसरी तरफ कॉमेडी फिल्मों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हंसाने के नाम पर निर्देशक अक्सर 'लॉजिक' जैसी अहम चीज को फिल्मों में पूरी तरह नजरअंदाज कर देते हैं. जैसे फिल्म के एक सीन में सारे कलाकार चीन की जेल में पहुंच जाते हैं और जेल में छुपकर घुसने की कोशिश करने के बाद भी वह जेल में जाकर अमन वाधवा (अपारशक्ति खुराना) से मिलकर बाहर आ जाते हैं. इतना ही नहीं, अमन भी उनके साथ बाहर आ जाता है. न जेल वाले कुछ कहते हैं और न जेलर. वहीं बिना पासपोर्ट के दो हिंदुस्तानी और एक पाकिस्तानी पुलिस ऑफिसर घूम रहा है और उन्हें कोई नहीं पकड़ता है. इस फिल्म में ऐसे कई सारे मूमेंट हैं जब 'लॉजिक' के बिना कॉमेडी करने की कोशिश दिखाई देती है.
काश ये कहानी बग्गा की होती
कहानी के झोल के बाद भी इस फिल्म में सबसे मजेदार किरदार हैं बग्गा यानी जिमी शेरगिल. फिल्म की सबसे मजेदार और दिलचस्प लाइनें भी बग्गा के ही पास हैं. इसके साथ ही जिमी शेरगिल का पंजाबी अंदाज स्क्रीन पर काफी दिलचस्प लगता है. फिल्म में हिंदुस्तान-पाकिस्तान को लेकर कुछ वन-लाइनर्स दिलचस्प हैं, लेकिन बस वहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ उसमान अफरीदी के अंदाज में पियूष मिश्रा भी काफी अच्छे लगे हैं. फिल्म की मुख्य किरदार सोनाक्षी सिन्हा की बात करें तो वह स्क्रीन पर देखने में अच्छी लगी हैं, एक्टिंग भी ठीक है लेकिन वह हैप्पी जैसी मदमस्त नहीं लगी हैं, जिससे प्यार हो जाए. इस हैप्पी की लोग क्यों मदद कर रहे हैं, यह फीलिंग फिल्म में क्रिएट नहीं हो पाती है.
कहानी के झोल के बाद भी इस फिल्म में सबसे मजेदार किरदार हैं बग्गा यानी जिमी शेरगिल. फिल्म की सबसे मजेदार और दिलचस्प लाइनें भी बग्गा के ही पास हैं. इसके साथ ही जिमी शेरगिल का पंजाबी अंदाज स्क्रीन पर काफी दिलचस्प लगता है. फिल्म में हिंदुस्तान-पाकिस्तान को लेकर कुछ वन-लाइनर्स दिलचस्प हैं, लेकिन बस वहीं हैं. वहीं दूसरी तरफ उसमान अफरीदी के अंदाज में पियूष मिश्रा भी काफी अच्छे लगे हैं. फिल्म की मुख्य किरदार सोनाक्षी सिन्हा की बात करें तो वह स्क्रीन पर देखने में अच्छी लगी हैं, एक्टिंग भी ठीक है लेकिन वह हैप्पी जैसी मदमस्त नहीं लगी हैं, जिससे प्यार हो जाए. इस हैप्पी की लोग क्यों मदद कर रहे हैं, यह फीलिंग फिल्म में क्रिएट नहीं हो पाती है.
कास्ट: सोनाक्षी सिन्हा, जस्सी गिल, जिमी शेरगिल, पियूष मिश्रा, डायना पेंटी और अली फजल
डायरेक्टरः मुदस्सर अजीज
रेटिंगः 2.5 स्टार
रेटिंगः 2.5 स्टार
कुल
मिलाकर कहा जाए जो यह फिल्म एक हिट कॉमेडी फिल्म के सीक्वेल के तौर पर तैयार करने की कोशिश में बनाई गई फिल्म हैं, जिसमें कोई मजेदार बात नहीं है. फिल्म का क्लाइमैक्स न तो दिल को हिलाता है और न ही आखिर की भागमभाग ही दिल को भाती है.