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यह है बिना सिर वाली देवी का एकमात्र मंदिर

यदि आप झारखण्ड की राजधानी रांची से मात्र 80 किमी आगे की ओर चलते हैं तो आपको राजप्पा नामक स्थान मिलता है इस स्थान पर एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां की देवी की प्रतिमा का सिर ही नहीं है यानी यहां पर बिना सिर की देवी की उपासना की जाती है। आज हम आपको इस मंदिर के बारे में ही जानकारी दे रहें हैं, आइये जानते हैं इस मंदिर के बारे में।
इस मंदिर का नाम है छिन्नमस्तिका मंदिर, यह झारखण्ड की राजधानी में एक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि दुनिया का सबसे बड़ा शक्तिपीठ कामाख्या है पर दूसरे नंबर पर राजप्पा नामक स्थान पर स्थित इस छिन्नमस्तिका मंदिर को ही सबसे बड़ा शक्तिपीठ कहा जा सकता है। इस मंदिर में चैत्र तथा शारदीय नवरात्र दोनों में ही भक्तों की भारी भीड़ लग जाती है।
Pic source India Mike
इस मंदिर के निर्माणकाल के विषय में पुरातात्विक विशेषज्ञों में कई मतभेद है पर अधिकतर लोग इस मंदिर को 6000 साल पहले का मानते हैं। इस मंदिर में दक्षिण की ओर माता छिन्नमस्ता की प्रतिमा बनी हुई है। जानकारी के लिए आपको यह बता दें कि माता छिन्नमस्ता तंत्र शास्त्र की 10 महाविद्याओं में से एक मानी जाती है और यह मंदिर एक शक्तिपीठ भी है, इसलिए यहां पर कुछ तंत्र साधक भी आते रहते हैं। इस मंदिर के अंदर में माता छिन्नमस्ता की प्रतिमा है, जिसके एक हाथ में तलवार है तथा दूसरे हाथ में इस मूर्ति का कटा हुआ सिर है। इस प्रतिमा में माता के कटे गले से रक्त की तीन धाराएं निकल रही दिखाई देती है, जिनमें से एक धारा माता के कटे हुए सिर के मुंह में तथा बाकी की दो धाराएं माता के पास खड़ी डाकनी तथा शाकनी नामक दो गणिकाओं के मुंह में गिर रही है।

Pic source Mouth Shut
इस मंदिर के पुजारी कन्हैया मंदिर के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ” यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है, बलि-स्थान पर प्रतिदिन औसतन सौ-दो सौ बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है, इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। नवरात्रि के मौके पर असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई प्रदेशों से साधक यहां जुटते हैं।”

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